Examine This Report on hindi story
Examine This Report on hindi story
Blog Article
By vivid storytelling and meticulous investigation, Rahul Sankrityayan weaves together a tale of Indian history, mythology, and philosophy. The novel explores the themes of social alter, cultural continuity, as well as cyclical character of existence. This Hindi fiction e book is celebrated for its literary richness, historical depth, along with the author’s capacity to present complex ideas within an obtainable manner.
All over the pages of our ebook, little ones will be a part of Leo and his mom since they explore the necessity of correct hand washing.
धीरे धीरे रूपा और पीपल के पेड़ की दोस्त बढ़ने लगी। जब राजा को इसकी भनक लगी तो वह विचलित हो उठा। रूपा किसी खतरे में न पड़ जाये यह सोच कर उसने जंगल के सभी पेड़ कटवाने का निर्णय ले लिया। राजा के आदेश से सैनिक जंगल में पेड़ काटने पहुंचे पर वह जैसे ही पीपल के पेड़ की टहनियां काटते, पेड़ से नयी टहनियां ऊग आती। सैनिक घबरा गए। तब पीपल के पेड़ ने गरज कर कहा की सालों से वह और उसके साथी इंसानों को सांस लेने के लिए हवा देते आ रहे हैं , और आज यह लोग उन्हें ही ख़त्म करने चले हैं। अगर पेड़ नहीं रहे, तो इंसान भी नहीं बचेंगे। यह पता चलने पर राजा को अपनी गलती का एहसास हुआ। उसने अपना निर्णय वापस लिया और रूपा और पीपल के पेड़ की दोस्ती की फ़िक्र छोड़ दी।
अपने दोनों हाथों में उठाकर आसमान में ले गई। उन्हें छोड़ दिया, वह धीरे-धीरे उड़ रही थी।
More Hamburger icon An icon utilized to characterize a menu which might be toggled by interacting with this particular icon.
In appreciate with all matters sluggish and peaceful, she can often be discovered looking for silent corners which has a glass of wine in hand. Other loves include small, inconsequential factors, like neatly tucked-in read more bedsheets and massive, significant points, like entire cheesecakes. She dreams of remaining a baker and crafting about food sometime.
सुरीली दोनों गीदड़ को अपने सिंघ से मार-मार कर रोक रही थी।
धत्! कल हो गई. देखते नहीं. रेशमी बूटों वाला सालू...?"
'बिना फेरे घोड़ा बिगड़ता है और बिना लड़े सिपाही.'
नैतिक शिक्षा – मेहनत करने से कोई कार्य असम्भव नहीं होता।
‘क्यों बिरजू की माँ, नाच देखने नहीं जाएगी क्या?’ बिरजू की माँ शकरकंद उबाल कर बैठी मन-ही-मन कुढ़ रही थी अपने आँगन में। सात साल का लड़का बिरजू शकरकंद के बदले तमाचे खा कर आँगन में लोट-पोट कर सारी देह में मिट्टी मल रहा था। चंपिया के सिर भी चुड़ैल मँडरा फणीश्वरनाथ रेणु
वह इतना सुधर गया था , गली में निकलने वालों को परेशान भी नहीं करता।
''एक राजा निरबंसिया थे”—माँ कहानी सुनाया करती थीं। उनके आसपास ही चार-पाँच बच्चे अपनी मुठ्ठियों में फूल दबाए कहानी समाप्त होने पर गौरों पर चढ़ाने के लिए उत्सुक-से बैठ जाते थे। आटे का सुंदर-सा चौक पुरा होता, उसी चौक पर मिट्टी की छः ग़ौरें रखी जातीं, जिनमें कमलेश्वर